Gherav - 1 in Hindi Moral Stories by PANKAJ SUBEER books and stories PDF | घेराव - 1

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घेराव - 1

घेराव

(कहानी पंकज सुबीर)

(1)

घटना को देखा जाए तो एसी कोई बहुत बड़ी घटना भी नहीं है कि उस पर इतना हंगामा हो। लेकिन अगर शहर का इतिहास देखें तो यही छोटी सी घटना बारूद के घर में जलती हुई अगरबत्ती की तरह साबित हो सकती है। शहर के कुछ आवारा शोहदे स्कूल से लौटती हुई दो बहनों को रोज़ छेड़ते थे। बहनों के साथ मुश्किल यह थी कि उनके घर में मर्द नाम की कोई चीज़ नहीं थी। उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे जिनके अचानक गुज़र जाने के बाद मां को अनुकंपा नौकरी बैंक में मिल गई थी। इस तरह घर में कुल मिलाकर ये ही तीन थीं, मां और दो बेटियाँ। दोनों बहनें चुपचाप सिर नीचा किये इन आवारा लड़कों की छेड़छाड़ को सहन करते हुए घर लौटती थीं।

एक बार स्कूल के प्रिंसीपल को भी दोनों ने शिकायत की, जिस पर प्रिंसीपल ने पुलिस में सूचना दर्ज भी करवाई, लेकिन अगर कहावत की भाषा में बात की जाए तो ढाक के पत्ते तीन ही रहे। पुलिस ने आकर उल्टा उन दोनों बहनों से ऐसे ऐसे सवाल पूछे कि उसके बाद फिर उनकी हिम्मत ही नहीं हुई कि फ़िर से कहीं शिकायत दर्ज करवाऐं। पुलिस की ओर से भी जब हरी झंडी मिल गई तो शोहदों की हिम्मत और भी बढ़ गई। लड़कियों के पास से तेज़ रफ़्तार में मोटर साइकिल ले जाना, दुपट्टा खींच लेना जैसी हरकतें करने लगे।

ये जो घटना हुई वह भी इसी तारतम्य में घट गई। घटना में इन लड़कियों की क़िस्मत और मरने वाले लड़कों का दुर्भाग्य दोनों एक ही बात से जुड़े थे। और वो बात केवल इतनी सी थी कि मरने वाले मुसलमान थे। हाँ तो हुआ इस तरह कि रास्ते में दुपट्टा खींचना, छेड़ना जैसी घटनाऐं वैसे कोई एक लड़का नहीं करता था, ये सभी का मिला जुला प्रयास था, मगर वो लड़का कुछ ज्यादा जोश में आ गया था। रविवार के दिन अल सुबह जब वो लड़की के घर के सामने से मोटर साइकिल पर जा रहा था तो उसने देखा कि बड़ी बहन घर के बाहर रस्सी पर कपड़े डाल रही है। उसने आव देखा ना ताव मोटर साइकिल खड़ी की और दौड़ पड़ा, जब तक वो लड़की कुछ समझती तब तक इसने उसे बांहों में भरा और जगह जगह चूम लिया। चूमने के बाद मोटर साइकिल उठाई और ये जा वो जा। रोती हुई लड़की अंदर पहुंची और मां को सारी बात बताई। मां भी शायद इसी दिन की ताक में थी, क्योंकि छेड़ने वाले लड़कों में आधे हिंदू थे और आधे मुसलमान थे इसलिये उसका कोई भी दांव नहीं लग रहा था, मगर आज जो आया था वो तो केवल और केवल मुसलमान ही था। और लड़की हिंदू थी।

मां ने बाहर निकल कर छाती पीट-पीट कर रोना शुरू कर दिया, बात की बात में लोग इकट्ठे हो गए। मां ने जो तस्वीर लोगों के सामने रखी उसमें ये कहीं नहीं था कि एक आवारा लड़का आकर मेरी लड़की के साथ ग़लत हरकत करके चला गया। तस्वीर तो कुछ इस तरह से सामने आई कि एक मुसलमान लड़का हिंदुओं के मोहल्ले में आकर एक हिंदू लड़की के साथ अभद्रता करके चला भी गया। मां जानती थी कि जब तक लड़के के आवारापन को गौण करके उसके मुसलमान होने का ढिंढोरा ना पीटा जाएगा तब तक कुछ भी नहीं होने वाला है।

लड़कियों की मां का तीर बिल्कुल निशाने पर जाकर लगा। भीड़ में शामिल जवान लड़कों की मछलियां मां की बात सुनते ही फड़क उठीं। कब बनी, किसने बनाई ये योजना, ये तो कोई नहीं जानता लेकिन हुआ ये कि वो घटना घट गई। रात को वो लड़का अपने एक दोस्त को लेकर फ़िर आया मगर उसका दुर्भाग्य कि सुबह से रात होने तक वो आवारा लड़का नहीं रहा था, वह अब मुसलमान हो चुका था। और इधर एक भरा पूरा हिंदू धर्म उसके कारण अपने को, अपनी अस्मिता को ख़तरे में महसूस कर रहा था। हालांकि ये प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि अगर रविवार की उस सुबह वह लड़का जोश में ना आता और उसके साथ वाला हिंदू लड़का जोश में आकर वह हरकत कर जाता तो क्या होता।

ख़ैर तो हुआ ये कि सुबह की ख़ुमारी में डूबा वो लड़का शाम को फ़िर लौटा मगर इस बार उसका आना ऐसा रहा कि फिर उसका लौटना नहीं हुआ। इधर उसने मोटर साइकिल को लड़की के घर के सामने रोका और उधर किसी ने ट्रांसफार्मर के कट आउट निकाल कर पूरे मोहल्ले की बिजली गुल कर दी। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह क्या हुआ कोई नहीं जानता। हर कोई यही कहता है कि वह तो उस समय अंधेरे में था। शोर शराबा, मार पीट, चिल्लाने के, कराहने के स्वर, हड्डियों के चटख़ने की आवाज़ें, बस यही सब कुछ दस पंद्रह मिनिट तक होता रहा, फ़िर कुछ भगदड़ का स्वर हुआ और ख़ामोशी छा गई। ये अंधेरे का विशेष गुण है कि उसमें घटने वाली घटनाओं का अंत ख़ामोशी के साथ ही होता है। ख़ामोशी काफ़ी देर तक बनी रही, टूटी तो पुलिस के सायरन के साथ। घटना का मुख्य पात्र तो घटना स्थल पर ही समाप्त हो चुका था, मगर उसका सहयोगी केवल इसलिए जीवित था क्योंकि उसकी सांसें चल रहीं थीं। मरना उसको भी था सो वो भी हस्पताल में रात भर ज़िंदा रहने के बाद सुबह सिधार गया।

देखा जाए तो घटना यहीं पूरी हो जानी थी क्योंकि जो होना था वो हो चुका था। मगर वास्तव में घटना यहीं से शुरू हुई थी। दोनों लड़कों मरने के बाद और ज़्यादा ज़ोर से मुसलमान हो गए। ज़ोर से मतलब उनके मरने से पहले तो हिंदुओं को लगा था कि ये मुसलमान हैं, मगर मरने के बाद मुसलमानों को भी लगा कि अरे..... ! वो तो मुसलमान थे। कुछ लोग कहते हैं कि उस तेरह साल के लड़के सनी ने ही अपने पिता के मोटर साइकिल के शोरूम से पुराना साइलेंसर उठा कर उससे दोनों लड़कों के सिर पर वार किये थे, जिससे वो मर गये। कुछ कहते हैं सनी का घटना की दो प्रधान चरित्र उन बहनों में से छोटी बहन के साथ कुछ चक्कर था और अपनी प्रेमिका के सामने वीरता दिखाने का ये सबसे अच्छा अवसर उसे जब मिला तो उसने इसे हाथ से जाने नहीं दिया। इस बात को कुछ लोग यह कह कर काट देते हैं कि भला तेरह साल के बच्चे का भी ऐसा कुछ चक्कर वगैरह हो सकता है। तो इस पर जवाब मिलता है, टीवी सीरियल देखने वाले बच्चे हैं भई, इधर मां का दूध छोड़ते हैं उधर जवान हो जाते हैं।

इस पूरे मामले पर कुछ (यकीनन हिंदू ) कहते हैं कि दरअसल तो मरने वाला दूसरा लड़का सनी के पिता के शोरूम पर काम करता था जहां से उसे निकाल दिया गया था, बस इसी अदावत में उसने मारने वालों में सनी का नाम भी लिखवा दिया और मर गया। कुछ लोग (यकीनन मुसलमान) कहते हैं कि मरने वाले लड़के के साथ सनी की बहन का कुछ चक्कर हो गया था। इसी कारण सनी के पिताजी ने उसे अपने यहां से हटा दिया था। और उसी का बदला सनी ने उससे उस रोज़ लिया, उसे इतना मारा कि वो मर ही गया। जितने मुंह उतनी बातें। इसलिये भी क्योंकि घटना में भीड़ भी थी और अंधेरा भी था। ये दोनो ही अंधी वस्तुऐं हैं, ना तो भीड़ की आंखें होती हैं और न ही अंधेरे की। ये दोनों चीज़ें अकेले अकेले ही बहुत ख़तरनाक होती हैं, अगर दोनों मिल जाऐं तो फ़िर तो क्या कहा जाए।

ख़ैर तो दोनों लड़के मरने के बाद मुसलमान हो गए। दोनों के घर पास पास ही थे। जब दोनों की लाशें घर लाई गईं तब तक मोहल्ले के सारे लड़के उसी तरह से मुसलमान हो चुके थे जिस तरह से बीती रात दूसरे मोहल्ले के सारे लड़के हिंदू हो गए थे। बात की बात में, ख़ून का बदला ख़्रून, जैसे नारे उछलने लगे। शहर में पूर्व में तीन सांप्रदायिक दंगे हो चुके थे, इसलिये पुलिस भी फ़ौरन हरकत में आ गई। और साथ ही साथ हरकत में आ गए पत्रकार भी जिनमें समीर भी था। एक टीवी समाचार चैनल का स्ट्रिंगर। शहर में तनाव कब हो गया किसी को पता ही नहीं चला, रात में ठीक ठाक सोए लोगों ने जब सुबह आंखें खोलीं तो शहर तनाव में था।

जैसे जैसे दिन चढ़ने लगा लोग धीरे धीरे लोगों से हिंदू और मुसलमानों में बदलने लगे। पुलिस इन्हें वापस लोगों में बदलने के प्रयास में जुट गई, तो पत्रकार लोगों में आ रहे बदलाव को सुर्खियों में ढालने में जुट गए। समीर का अपने चैनल पर तीन बार फ़ोनो हो चुका था तीनों बार समाचार वाचक ने उससे एक ही बात पूछी थी, ‘हां समीर जी बताइये कैसी स्थिति है वहां’ और तीनों बार उसने एक सा ही उत्तर दिया था ‘जी यहां काफ़ी तनाव है, हालांकि अभी कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटी है, और पुलिस भी नियंत्रण के प्रयास में लगी है, फ़िर भी चारों तरफ़ दहशत का माहौल है’।

दिल्ली में बैठे समाचार संपादक व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रहे थे कि कुछ हो जाए, मगर यहां का तनाव घटना में बदल नहीं पा रहा था। समाचारों की दुनिया ही ऐसी है, यहां रोज़ कुछ चाहिए होता है, कल जो कुछ भी घट गया वो भले ही कितना महत्वपूर्ण रहा हो लेकिन वो आज की सुर्ख़ी नहीं हो सकता। आज तो कुछ ना कुछ नया ही चाहिए, कुछ ऐसा जो आज का ही हो।

पुलिस सक्रिय थी तो केवल इस बात को लेकर कि दोनों मरे हुए लड़कों को जल्दी से जल्दी दफ़ना दिया जाए। पुलिस को पता था कि लाशें राजनीति करने का सबसे अच्छा साधन होती हैं। जब तक लाशें घर में रखी हैं तब तक ये तनाव भी रहेगा, और घटना की आंशका भी रहेगी। डीएसपी स्वयं दो बार लड़कों के घरवालों से मिन्नत कर चुका था कि जल्दी से जनाज़ा उठाया जाए, लेकिन लड़कों के घरवाले हर बार टका सा जवाब देकर लौटा रहे थे। ख़ून का बदला ख़ून, के नारों के बीच अब सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि जब तक सनी के ख़िलाफ तीन सौ दौ का मामला दर्ज नहीं किया जाएगा तब तक जनाज़े नहीं उठेंगे। डीएसपी माथे का पसीना पोंछते हुए कभी वायरलेस पर फटकारते एस पी को जवाब देता, तो कभी समाचार चैनल वालों को सेल फोन पर घटना की जानकारी दे रहा था।

दोपहर होने तक भी जब जनाज़े नहीं उठे तो अंततः एस पी को आना पड़ा। एस पी अरविंद कुमार भी घुटा हुआ डिप्लोमेट था उसने लड़कों के परिवार वालों को इस बात का आश्वासन दिया कि सनी के ख़िलाफ मामला दर्ज कर लिया जाएगा इस बात का भरोसा मैं देता हूँ आप जनाज़े तो उठाइये। और अंततः जनाज़े उठे, आगे बड़ी संख्या में पुलिस जवान डीएसपी के साथ थे तो पीछे भी उतनी ही पुलिस सिटी कोतवाली के थाना प्रभारी के साथ। और उनके साथ थे पत्रकार पल पल की जानकारी सेलफ़ोन द्वारा प्रसारित करते, ‘हाँ अख़लाक़ यहाँ से जनाज़े उठ गये हैं, भारी पुलिस बल भी साथ में है।’

क्रमश...